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                                  भूमिका

           छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम संसार के कोने-कोने तक परिचित है । उनका व्यक्तित्तव भारतीय ही नहीं, अपितु विश्व इतिहास में एक अद्भूत साहस, प्रशंसनीय चरित्रबल आदि गुणों के आधार पर छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने कार्य के हर क्षेत्र में युग प्रवर्तनकारी कार्य किया है । संस्कृति, राष्ट्र, धर्म आदि के प्रति परम आस्थावान होते हुए भी शिवाजी महाराज अन्य सभी धर्मों के प्रति आदर तथा अन्य सम्प्रदाय के लोगों के प्रति पूर्ण सदूभावना रखते थे । उनकी राजनीति में जातीय भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं था । शिवाजी महाराज के गुणों की प्रशंसा अनेक पाश्चात्य समीक्षकों ने भी मुक्तकंठ से की हैं | उनका आदर्श हमारी वर्तमान राष्ट्रीयता के लिए भी सामायिक हैं । शिवाजी महाराज का जीवन-चरित्र कर्मठता, सच्चरित्रता, साम्प्रदायिक एकता आदि प्रशंसनीय गुणों का एक आदर्श प्रस्तुत करता है । ऐसे महान राष्ट्रपुरुष का चरित्र मेरे लिए आकर्षण का विषय रहा हैं । लोकतंत्र की बागड़ोर संभालनेवाले शासक से देश के नागरिक होने के नाते हम जिन गुणों की अभिलाषा रखते हैं, वे सभी गुण छत्रपति शिवाजी महाराज के व्यक्तित्त्व में विद्यमान थें । गंभीरता के साथ विचार किया जाए तो आज के भयावह परिवेश में “शिवचरित्र' मात्र प्रेरणादायी ही नहीं अपितु उद्धारक पथ-प्रदर्शक साबित होगा । छत्रपति शिवाजी महाराज सभी जाति-धर्मों के लोगों के राजा थें, यह ऐतिहासिक सत्य ही उन्हें राष्ट्रपुरुष' बनाता है । वर्तमान लोकतंत्र प्रणाली के धर्मनिरपेक्ष युग में उनकी यह प्रतिमा निश्चित रूप से प्रेरणादायक हैं । इन्हीं बातों से मुझे संशोधन करने की प्रेरणा मिली और उसी के फलस्वरूप यह कृति आपके सामने है । भूषण ने जनता के हृदय को पहचाना, उनकी सामायिक समस्याओं को यथार्थ रूप में चित्रित किया है ।

 

            भूषण के काव्य में आवेग है और वह आवेग भूषण के काव्य की शक्ति है । उन्हें यह शक्ति अपने नायक छत्रपति शिवाजी महाराज के कारण प्राप्त हुई है । भूषण के आवेग में वीर भावना व्यंजित हुई है, इसीलिए उसे हम ओजयुक्त कह सकते है । भूषण ने छत्रपति शिवाजी महाराज के यशोगान से जनता में चेतना का संचार किया है । इस चेतना में ही भूषण के काव्य का मूल्य उजागर होता है । भूषण के काव्य में इतिहास जीवित है । ऐसा इतिहास, जिसने राष्ट्र के निर्माण में अभुतपूर्व सहयोग दिया है । राष्ट्रीय एकता के विकास का जो गुणात्मक रूप दिखाई देना चाहिए था, वैसा दिखने के बजाय एकता के विरुद्ध उठने वाली समस्याओं का स्वरूप बढ़ता जा रहा है । वास्तविकता देखे तो जातिवाद, साम्प्रदायिकता और असामान्य आर्थिक नीतियों के कारण आपस में संघर्ष को उद्यत हैं । ऐसे में भारतीय होने की भावना का विकास किस तरह से हो, यह एक विचार और चिन्ता का विषय है । ऐसे संवेदनशुन्य और भटकाव भरे वातावरण में राष्ट्रीय जीवनधारा को मजबुत करने के लिए भूषण के काव्य में छत्रपति शिवाजी महाराज का यशोगान अत्यंत प्रेरणादायी हैं । इस नाते भूषण का काव्य आज भी प्रासंगिक है । यह पुस्तक भी इसी दिशा में एक प्रयास मात्र है ।

             

              मनुष्य की आंतरिक जिज्ञासा सदा से ही अनुसंधान का कारण बनती रही है । शोध में शोधार्थी के सामने तथ्य मौजुद होते हैं, उसे उसमें से अपनी सूज्ञ और ज्ञान द्वारा नयी सिद्धियों को उद्धाटित करना होता है । शोध के बिना ज्ञान और विकास में वृद्धि संभव नहीं है । इस प्रकार मेरे मन में भी उत्कट इच्छा थी कि राष्ट्रनायक छत्रपति शिवाजी का चरित्रगान करनेवाले कवि भूषण का जन्मस्थल कैसा होगा? यह इच्छा मन में रखते हुए भूषण पर नई खोज के लिए उनके जन्मस्थल (उ.प्र.) की ओर यात्रा शुरू हुई । मैं और मेरे पतिदेव ने आगरा से भूषण के जन्मस्थल की ओर प्रस्थान किया । आदमी के भीतर कुछ कर गुजरने की इच्छाशक्ति हो, तो उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है । भूषण का गाँव टिकवाँपुर कानपुर जिले में है यह मालुम था, परंतु कौनसे तहसील में है यह मालुम नहीं था । मैं और मेरे पतिदेव ने टिकवाँपुर गाँव कौनसे तहसील में आता है, यह राह चलते लोगों से पूछते-पूछते चल पड़े । एक मसीहा हमें मिला, जिन्होंने घाटमपुर तहसील में टिकवाँपुर गाँव है यह जानकारी दी । कानपुर जिला से घाटमपुर तहसील ३४ कि.मी. पर है, घाटमपुर तहसील से सजेती पोस्ट ऑफिस १२ कि.मी. है और सजेती से कवि भूषण का गाँव टिकवाँपुर १.५ कि.मी. पर हैं । मेरी इच्छा और मेरे अनुसंधान का चरम बिंदु भूषण का घर देखकर, जिस ध्येय प्राप्ती के लिए हम निकल पड़ते है अगर वह हासिल हो जाय तो आदमी की खुशी का ठिकाना नहीं रहता और मुझे भी ऐसा ही लगा । भूषण के वंशजों ने हमारा अच्छा स्वागत किया । वहाँ घर के परिसर को देखकर मुझे छत्रपति शिवाजी महाराज और भूषण की अध्यात्मिक सामायिकता का दर्शन हुआ । वहाँ आज भी शिवजी को जलाभिषेक और रणमणदेवी की आराधना से संस्कृति का जतन दिखाई देता है । भूषण के वंशज सुरेन्द्रनाथ तिवारी के पत्रव्यवहार से मुझे आत्मबल मिलता गया । भ्रमणध्वनि से भी प्रतिक्रियाएँ मिली ।॥ प्रतिक्रिया में लिखे गए पत्र को अन्त में दे रही हूँ । भूषण के वंशजों ने कवि भूषण की हस्तलिखित रचनाएँ और पांडुलिपियाँ सुरक्षित रखी है । लेकिन संशोधन कार्य के नाम मध्यप्रदेश, कानपुर विश्वविद्धालय के प्रवक्ता उनके पांडुलिपियाँ ले गये । जिन्हें आजतक वापस नहीं किया । बची हुयी कुछ प्रतियाँ एक छोटीसी अलमारी में रखी हुई है । पाठकों के लिए महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों के छायाचित्र मैं अन्त में दे रही हूँ जो वीररस के प्रणेता कवि भूषण के दर्शन कर सके । राष्ट्रीय भावना देश के हर व्यक्ति में आत्मसम्मान का भाव जगाती है । हर व्यक्ति में अपने देश के प्रति प्रेम एवं बलिदान की भावना होती हैं । भूषण ने शिवाजी महाराज के चरित्र के माध्यम से हमारे देश की राष्ट्रीय समस्या, राष्ट्रीय एकात्मता, नैतिकता, एकता, धर्मनिरपेक्षता आदि समस्या का हल उद्घाटित किया गया है । भूषण राष्ट्रीय भावों के गायक है । उनकी वाणी पीड़ित प्रजा के प्रति एक अपूर्व आश्वासन है । राष्ट्रीय कवि की इतनी शक्ति होती हैं कि सत्य को अभिव्यक्त कर हर बाधा पार कर सके । छत्रपति शिवाजी महाराज किसी विशेष जाति-धर्म के न होकर आम जन के राजा थे, एक व्यक्ति न होकर एक राष्ट्रीय नायक हैं । जालना (महाराष्ट्र) शहर को शिवाजी महाराज ने अंतिम भेट दी थी । शिवाजी महाराज ने मुस्लिम अत्याचारी शासकों का विरोध किया, मुस्लिम मज़हब का नहीं । उनकी धार्मिक उदारता का उदाहरण आज भी जालना में जालुल्लाशाह और बाबुल्लाशाह के दर्गा में चार नगाड़े भेट रूप में देखकर सर्वधर्मसहिष्णुता की प्रेरणा देनेवाले ये नगाड़े छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा प्रेरणादायक सिद्ध करते हैं । सभी धर्म के प्रति सम्मान भाव के प्रतीक इन चार नगाड़ों के छायाचित्र मैं अन्त में दे रही हूँ । कवि भूषण ने छत्रपति शिवाजी महाराज की उदारता का वर्णन सुंदर ढंग से किया हैं - 'सोहत उदारता औ सीलता खुमान मैं सो कंचन मैं मृदुता सुगंधता बखानी मैं ।'' अर्थ- शिवाजी की उदारता और सुशीलता सोने में सुगंध और कोमलता की तरह शोभित है । जहाँ ऐतिहासिक महत्त्वपूर्ण घटनाएँ भूषण ने वर्णित की हैं, उन स्थानों पर जाकर मैंने छायाचित्र खींचे हैं, जो वर्तमान स्थिति के है । ये छायाचित्र शिवाजी महाराज की प्रतिमा को स्पष्ट करने में सहायक होने वाले हैं । इन छायाचित्रों को मैं अन्त में दे रही हूँ । भूषण का काव्य राष्ट्रीय चेतना से ओतप्रोत है । वे सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय भावना के कवि है । राष्ट्र की अमर धरोहर हैं 

              प्रथमत: श्रद्धेय गुरुवर छत्रपति शिवाजी महाराज के चरित्र के गहन अध्येता डॉ. वसंतजी मोरे ने इस पुस्तक की प्रस्तावना लिखी है, जिनका कृपा आशीर्वाद, मार्गदर्शन और प्रोत्साहन हमेशा मिलता रहा है । मैं उनके सौम्य व्यक्तित्व के प्रति श्रद्धा एवं आदर प्रस्तुत करती हूँ । मुझे उनका आशीर्वाद मिलता रहें ऐसी कामना करती हूँ । प्रस्तुत शोध-कार्य पूज्य गुरुवर डॉ. प्रतिभाजी धारे के वात्सल्यपूर्ण, स्नेहसिक्त, कुशल मार्गदर्शन के कारण सम्पन्न हुआ । इस पुस्तक में भी उन्होंने मेरे सहज आग्रह करने पर आशीर्वचन के रूप में लिखकर मुझे प्रेरित किया है । उनके प्रति मैं हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ । इस शोध के प्रकाशित होने में श्रीमती दानकुँवर महिला महाविद्यालय संस्था के अध्यक्ष श्री महेन्द्रकुमारजी गुप्ता, सचिव श्री मुकेशजी अग्रवाल, श्री सुरेशबाबूजी अग्रवाल, संचालक श्री श्यामसुंदरजी अग्रवाल, श्री गणेशजी अग्रवाल, श्री संजयजी अग्रवाल, श्री जितेंद्रजी गुप्ता, श्री सुरेन्द्रजी अग्रवाल, श्री विनोदजी अग्रवाल, श्री राजेशजी अग्रवाल, श्री जगदीशजी अग्रवाल, प्र.प्राचार्य डॉ. विजयजी नागोरी, उपप्राचार्य डॉ. विद्याजी पटवारी, हिंदी विभागाध्यक्षा डॉ. सरोजजी पाटणी इन सभी के विशेष प्रोत्साहन एवं सुझाव उल्लेखनीय है । इन्होंने समय-समय पर मुझे लेखन एवं प्रकाशन के लिए उत्साहित किया है । इनके प्रति मेरी श्रद्धा एवं कृतज्ञता सादर समर्पित है। प्रतिष्ठित विद्वान, सौम्य व्यक्तित्त्व की प्रतिमूर्ति महोदया हायब्रीड सीड्स प्रा.लिमिटेड, जालना के संचालक श्री रामकिसनजी मुंदडा इनके अमित आशीर्वाद के सम्मुख मैं नतमस्तक हूँ। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के आदरणीय गुरुवर डॉ. अंबादासजी देशमुख, डॉ. माधवजी सोनटक्के, डॉ. गणेशराजजी सोनाछे, डॉ. हनुमंतजी पाटील, प्रो.डॉ. सुधाकरजी शेंडगे, प्रो.डॉ. संजयजी नवले, डॉ. भारतीजी गोरे, डॉ. संजयजी राठोड, डॉ. भगवानजी गव्हाडे इन महानुभावों का मुझे मार्गदर्शन और सहयोग मिला । मैं इन सभी की आभारी हूँ । डॉ. अलकाजी गडकरी, डॉ. नानासाहेबजी गोरे, डॉ. ज्ञानेश्वरजी महाजन के प्रति भी विशेष कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ । जिनके द्वारा समय-समय पर मुझे कुछ करते रहने का सहज परामर्श मिलता रहा है । उनका यह सहयोग-भाव सदैव इसी भाँति बना रहे, ईश्वर से ऐसी प्रार्थना है । अद्धेय संत भागीरथी और संत भीमरावजी चव्हाण इनका कृपाशिर्वाद मुझ पर सदैव बना रहे ऐसी कामना करती हूँ । मेरे जीवन को बल देनेवाले मेरे पूज्य पिताजी एवं माताजी इनके प्रति मैं नतमस्तक हूँ । मेरी सारी शक्ति परिवार के सदस्यों के कारण है । जिनके सहयोग और प्रेरणा से मैं यह कठिन कार्य सफलतापूर्वक संपन्न कर सकी । उनके लिए आभार मानना पर्याप्त नहीं हैं । मैं उनके ऋण में हमेशा रहना चाहूँगी - ऐसे मेरे जीवनसाथी श्री भास्करजी वाडेकर, मेरे दोनों पुत्र नीरज और देवांश इनका सहयोग भी सदैव शक्ति-रूप में मुझे मिलता रहा है । मेरे अनुज विजय, राजेश और मेरी छोटी बहन राजश्री इनके स्नेह एवं आत्मीयता पर मैं अपना अधिकार मानती हूँ । जिन महानुभावों की इस पुस्तक प्रकाशन के लिए अप्रत्यक्ष रूप से सहायता मिली है, उनके प्रति मैं आभार व्यक्त करती हूँ । आशा करती हूँ कि पाठकगण मेरी इस प्रथम रचना का उचित मूल्यांकन कर मुझे प्रेरणा देते रहेंगे इसी अपेक्षा के साथ....

 -  प्रा.डॉ. जयश्री वाडेकर

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