एम. ए (हिंदी), बी.एड, पीएचडी (हिंदी)
असिस्टेंट प्रोफेसर (हिंदी)
M.A (Hindi), B.Ed, Ph.D (Hindi)
Assistant Professor (Hindi)
प्रस्तावना
छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता शहाजीराजे भोसले ,दक्षिण के बलशाली आदिलशाही के सेनानी थे। उनके नियंत्रण में करीब ७० हजार सेना थी। पुना तथा बेंगलुरु ऐसे दो स्थानों पर उनकी जहांगीर थीं। पुना की जहांगीर शिवाजी राजे के देखरेख में थी। बेंगलुरु में राजधानी स्थापित कर शाहजी राजे वहां राज कारोबार देखते थें। उनका रौब किसी राजा से कम न था। उनके दरबार में कुल ७० विद्वान ज्ञानी पुरुष थें। यह सभी ज्ञानी पंडित भारत के कोने- कोने से उनकी कीर्ति सुनकर उनकी ओर आकर्षित हुए थें।
अपने पिता शाहजी राजे की साहित्य एवं संस्कृति के प्रति की अभिरुचि को छत्रपति शिवाजी महाराज ने आगे बरकरार रखा। जो भी अनेक पंडित अथवा कवि रायगढ़ पर छत्रपति शिवाजी महाराज के आश्रय में जो कई पंडित तथा कवि रायगढ़ पर आए उनमें कवि भूषण का नाम अग्रक्रम से लेना चाहिए। स्वयं भूषण लिखते हैं ,'देसन- देसन ते गुनी, आवत जाचन ताही। तिन में आयों एक कवि, भूषण कहियतू जाही।।"
भूषण का कालखंड यानी क्रूरकर्मा औरंगजेब बादशाह का कालखंड। हिंदू धर्म तथा संस्कृति पर किए अतीव अत्याचारों से त्रस्त होकर कवि भूषण असामान्य पराक्रमी छत्रपति शिवाजी के प्रति आकर्षित हुआ और अपनी विलक्षण प्रतिभा के बलबूते पर शिवराज भूषण तथा शिवा बावनी जैसे कलाजयी ग्रंथों का निर्माण किया। तथा इन ग्रंथों में चित्रित होने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज की सामाजिक चेतना का परिशीलन प्रस्तुत ग्रंथ की लेखिका डॉ. जयश्री वाडेकर ने किया है। इसके पूर्व लेखिका ने 'छत्रपति शिवाजी महाराज की राष्ट्रीय प्रेरणा ' (भूषण के काव्य में) इस ग्रंथ का निर्माण किया ही है।अब दूसरे ग्रंथ में छत्रपति शिवाजी महाराज की सामाजिक चेतना की उपयुक्तता की खोज कर रही है। इस प्रकार से इस ग्रंथ से डॉ.वाडेकर द्वारा लिखित भूषण काव्य के दो महत्वपूर्ण अंगों का अनुसंधानत्म अनुशीलन हो रहा है। इस प्रकार के साहित्यिक, सामाजिक तथा ऐतिहासिक कार्य के लिए मैं, उनका हार्दिक अभिनंदन करता हूं।
ग्रंथ के प्राक्कथन में ही डॉ. वाडेकर ने भूषण काव्य के सामाजिक योगदान स्पष्ट करते हुए लिखा है कि, "कवि भूषण का साहित्य समाज और मानव कल्याण की दिशा की पहचान कराता है। युवा पीढ़ी को समाज की समस्याओं की दिशा में संवेदनशील बनाने और उन्हें शिक्षित करने के लिए वह कैसे इन समस्याओं के उन्मूलन के लिए योगदान कर सकते हैं"।
पर भूषण काव्य की इतनी ही एकमात्र विशेषता नहीं अतः उनके काव्य में समसामयिक समाज जीवन की अभिव्यक्ति यथार्थरूप से प्रस्तुत होती है। डॉ. वाडेकर आगे लिखती है," भूषण के काव्य में सम कालीन लोकजीवन की अभिव्यक्ति हुई है। इसी लोकग्राही दृष्टि के फलस्वरूप उनकी रचनाओं में राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक स्थितियों का यथार्थ एवं प्रत्यक्ष स्वरूप परिलक्षित हुआ है"।
औरंगजेब बादशाह की अन्यायी,अत्याचार, राजसत्ता ने कोहराम मचा दिया था। हिंदुस्तान के किसी भी राजा में उस पर रोक लगाने की क्षमता नहीं थी। भूषण कहते हैं," औरंग अठाना सहा सूर की ना मानै अनि जबर जो राणा भयो जाली जमानों को। देवल डीगाने राव राने मुरझाने अरूधरम ढहाना पन ए मेठृयो हे पुरान को।।" अर्थ-- औरंगजेब किसी को मानता नहीं था।वह जालिम बन गया था। ऐसे समय में सभी राजाओं ने आशाओं को खो दिया था किसी में भी विरोध करने का साहस नहीं था धर्म भवन का भवन गिर गया था।पुराणों की मर्यादा ए मिट गई थीं। ऐसे जालिम उद्मम सत्ताधिश का विरोध करना छोड़ के हिंदुराजा आपस में फुट डालें बखड़े खड़े कर रहे थे। भूषण उन्हें दूषण देते हैं," आपस की फूट जीते सारे हिंदूवान टुटे टुटयो कुल रा्वन अनीति अति करते।। अर्थ- मुगल शासक का अत्याचार की पराकाष्ठा चरम सीमा पर पहुंच गई थी। और हिंदू शासक पतन के खाई में गिरते- गिरते अस्तित्वहीन हो गए थे।
इस प्रकार की अंधकार में तथा निराश जनक परिस्थिति में स्वदेश के हिंदू धर्म एवं संस्कृति की रक्षा हेतु छत्रपति शिवाजी महाराज दौड़े चले आए, जो दक्षिण की ढाल बने तुर्कों का काल साबित हुए। "तेरो करवाल भयो दच्छिन को ढाल भयो। हिंदू को दीवाल ;काल तुरकान को।।
औरंगजेब द्वारा हिंदू धर्म तथा संस्कृति पर ढाये अत्याचारों की पार्श्वभुमि पर भूषण को शिवाजी महाराज का कार्य हिंदू तथा हिंदुत्व रक्षक के रूप में बहुत पसंद आया। इसीलिए शिवाजी महाराज के इस सर्वांग कार्य का वर्णन करते हुए उनकी प्रतिभा एक समान कैसी विकसित होती है। यह देखिए -"राखी हिंदूवान को तिलक राख्यों अस्मृति पुराण राखे बेद बिधि सुनी मै राखी रजपूती राजधानी राखी राजन की, धरा में धर्म राख्यों राख्यों गुन गुनी में"।। अर्थ- हे शाहजी के सुपुत्र शिवाजी महाराज, आपकी तलवार ने हिंदुत्व बचाया और हिंदुओं की तिलक की रक्षा की है।वेद पुराणों की रक्षा की है ।क्षत्रियत्व की रक्षा की साथ राजाओं की राजधानी बचाई, गुणियों में गुण की रक्षा की।
शिवाजी महाराज की तलवार ने हिंदू का हिंदुत्व, वेद- पुराण, क्षत्रिय राजाओं का रक्षण किया, इस प्रकार का सत्य भूषण एक स्थान पर उद्घाटित करते हैं -"भूषण सुकवि जीति मरहटन की देस-देसकी राति बखानी तब सुनी मै। साही के सपूत शिवराज समशेर तेरी दिल्लदिल दाबिकै दीवाल राखी दुनी मैं।।"( हे शाहजी के सुपुत्र शिवाजी महाराज, अपने मराठों की सीमा की विजय की और मैंने सुना है कि देश- देश ने आपकी कीर्ति का वर्णन किया है। अपने दिल्ली की सेना को हराकर संसार की मर्यादा रखी।)
दिल्लीपति के खोज को शिकस्त देकर हिंदू के स्वत्व की रक्षा करनेवाला कीर्तिमान राजा इतना ही वर्णन कर भूषण रुके नहीं संपूर्ण काव्य में भूषण ने अपनी प्रतिभा और भाषा शैलियों का मनोहर अंकन किया है।सूर्य के समान प्रतापी, मंदिर और देवता का रक्षक, दूर्जनऒं का संहाराक, ईमान न्याय शासक, दूरदर्शी, जनकल्याणी,उदार,विद्याप्रोत्साहक,साहसी , धैर्यवान, युक्तिमान, स्वाभिमानी, बुद्धिमान, चतुर, मानवता का भूषण, दीन दयालु, स्त्रीरक्षक इस प्रकार को कई गुणों की बौछार भूषण अपने काव्य में करते हैं। जिसे भूषण के शब्दों में -"साहितनै सरजा समरत्थ करी करनी धरनी पर नीकी ।भूलिगो भोज से विक्रम से औ भई बली वेनू की कीर्ति फीकि ।।" अर्थ- शाहजी के पुत्र सब प्रकार से समर्थ वीर केसरी शिवाजी महाराज ने पृथ्वी पर ऐसे उत्तम कार्य किए हैं कि उनके सामने लोग बली तथा वेणु, वेणु अयोध्या का नरेश था वह अनीश्वरवादी परंतु वैज्ञानिक दृष्टि तथा न्याय प्रिय राजा था ऐसे महादानी राजाओं का यश फीका पड़ा और प्रतापी विक्रमादित्य को भूल गए। और एक स्थान पर भूषण ने शिवाजी महाराज की तुलना जनक ययति और अंबरीश आदि महान पौराणिक राजाओं के साथ की है -"आजुयही समै महाराज सिवराज तुही। जगदेव जनक जजति अंबरीक सो"।।
वास्तविक रूप में शिवाजी महाराज ज्ञानी पुरुष थे।ईश्वर के सगुण तथा निर्गुण दो रूप होते हैं, उन्हें जानकारी थी अतएव उनके दोनों रूपों में वे श्रद्धा रखते थे।दोनों रूपों की चाहत शिवाजी राजे में थी। देखिए -"चाहत निर्गुण सगुण को, ज्ञानवंत की बान। प्रकट करत निर्गुण सगुण, सिवा निवजै दान"।। भूषण ने शिवचरित्र के अफजलखान का वध, आगरा से रिहाई, सिंहगढ़ का युद्ध आदि महत्वपूर्ण चयनित घटना- प्रसंगों पर ही भूषण ने काव्य रचा है। अफजलखान के वध का अलंकारिक वर्णन करते हुए वे लिखते हैं-" हिंदआन द्रुपदी की इज्जत बचैबे काज। झपटि बिराटपुर बाहर प्रभाव को"।। अर्थ-हिंदूरुपी द्रोपदी की इज्जत को बचाने के लिए भीमरूपी शिवाजी महाराज ने प्रतिज्ञा करके विराट नगर से बाहर निकलकर अफजलखान रूपी कीचक को मार डाला था।
इससे भी प्रभावी वर्णन शिवाजी महाराज की आगरा भेंट का किया है। जिसमें उनके निर्भय एवं स्वाभिमानी वृत्ति के दर्शन होते हैं। दरबार में उन्हें उचित सम्मान ना मिल पाने के कारण क्रुद्ध हो जाते हैं तथा बादशाह को मुजरा किए बगैर अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए दरबार से बाहर निकलने के प्रसंग का वर्णन करते हुए भूषण लिखते हैं-" "सबन के ऊपर ही ठाढो रहिबे के जोग ताही खरो कियो छ-हजारिन के नियरे।हीं जानि गैरमिसिल गुसीले गुसा धरि मन कीन्हो ना सलाम न बचन बोले सियरे। भूषण भनत महाबीर बलकन लाग्यौ सारी पातासाही के उडाय गए जियेरा।तमक तें लाल मुख् शिवा को निरखि भए साएमुख्य नौरंग सिपाह मुख् पियरे।"। अर्थ -शिवाजी महाराज औरंगजेब के दरबार में अधिकारी थें,उन्हें औरंगजेब ने छ:हजारि मनसुबेदारी की पंक्ति में खड़ा रखकर उनका अपमान किया और इस प्रकार उनके प्रति अपनी मानसिक भाव को अभिव्यक्त कर दिया। इस कार्य को न्याय विरुद्ध एवं अनुचित जानकर अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने आवेश में औरंगजेब को न केवल अपनी मानसिक क्रोध से अवगत करवा दिया वरन अपने वीर रूप से भी परिचित करवा दिया और अपनों से अवगत करवा दिया शत्रु के दरबार में चारों ओर से सुरक्षा के खतरे में डालकर शत्रु की मर्यादा की उपेक्षा निर्भीक परमवीर शिवाजी करते हैं। कवि भूषण रहते हैं,शिवाजी महाराज का क्रोध देखकर औरंगजेब का मुख अपमान के कारण लाल हो गया तथा सैनिकों के मुख भय के कारण पीले पड़ गए।
औरंगजेब बादशाह को चकमा देकर शिवाजी महाराज आग्रा कैद कैसे निकले इसे अंततक बादशाह समझ नहीं पाया। बादशाह शिवाजी महाराज को पकड़ने हेतु अपने सैनिक चारों दिशाओं को भेज दिए परंतु इन सभी के चंगुल से निकलकर शिवाजी राजे सही सलामत रायगढ़ पर पहुंचे। शिवाजी महाराज के अभूतपूर्व धैर्य और यश का वर्णन भूषण करते हैं--" घिरे रहे घाट और बाट सब घिरे रहे बरस दिना की गैल छिन मांही छवै गयो। ठाठौर-ठौर चौकी ठाढी रही अंसवारण की मीर उमरावण की बीच हवै चलै गयो। देख में न आयो ऐसे कौन जाने कैसे गयो दिल्ली कर मीडै कर झारत कितै। सारी पाताशाही के सिपाही सेवा करें परयो रहयो पलंग परेवा सेवा है गयो।" अर्थ--- आगरा किले से छत्रपति शिवाजी लाखों सैनिक उनका पीछे करते समय भी उन सभी को चकमा देकर सकुशल रायगढ़ पहुंच गए ।भूषण कहते हैं कि महाराष्ट्र की तरफ आने वाले सभी रास्ते उतार और घाट मुगलों ने रोक लिए। स्थान -स्थान पर घुड़सवारों की चौकियां बिठा दीं। इतना होते हुए भी सरदार और उमरावों के बीच से शिवराज भाग गए। किस तरह भाग गए किसी को पता नहीं दिल्ली शासन को परास्त करके चकमा देकर भाग गए। बादशाह के सभी सिपाही शिवा- शिवा करते पड़े रहे और शिवराज पंछी की तरह उड़ गए।
पुरंदर के सुलह के पश्चात शिवाजी महाराज ने मुगल बादशाह को जो किले दिए थे वेआगरा से वापिस आने के बाद शिवाजी महाराज ने काबीज करना आरंभ किया। सबसे महत्वपूर्ण सिंहगढ़ किला शिवाजी महाराज को देना पड़ा था। उसे फिर से हासिल करने महत्वपूर्ण जिम्मेदारी शिवाजी महाराज ने तानाजी मालुसरे तथा उनके भाई सूर्याजी को सौंपी।उन्होंने मावलों को साथ लेकर रात में ही किले की चट्टान पर चढ़कर किले पर हमला बोल दिया किलेदार उदयभान राठोड़ ने अपने सैनिकों को साथ तानाजी मालुसरे पर हमला बोल दिया इस घमासान लड़ाई का वर्णन करते हुए भूषण लिखते हैं--"साहितनै सिव साहि निसा मैं निसांक लियो गढ़सिंह सौहानौ। राठिवरो को संहार भयो लरि कै सरदार गिरयौ उदैभानौ।भन यो घमासान भो भूतल घेरत लोथिन मानो मसानौ। कयै सुछज्ज छटा उचटि प्रगटि परभा परभात की मानौ।"अर्थ-- शाहजी के पुत्र शिवाजी महाराज ने निर्भयता पूर्वक सिंहगढ़ को रात में युद्ध करके विजय कर दिया। किले में समस्त राठौर क्षत्रिय मारे गए और तानाजी मालुसरे के हाथों उदयभानु भी इस युद्ध में मारा गया कवि भूषण कहते हैं कि ऐसा घमासान युद्ध हुआ था मानव पृथ्वी तल लाशों से घिरा हुआ शमशान हो। शिवाजी के दुर्ग विजय की सूचना देने के लिए घुडसवारों की फूस झोपड़ियों में आग लगा दी ऊंचे छज्जों पर आग इस प्रकार भड़की मानो प्रभातकाल की लाली फैल गई हो।
कवि भूषण ने शिवचरित्र की घटनाओं का अध्ययन बहुत ही बारकी तथा संदर्भों के साथ किया था। यह उनके काव्य से स्पष्ट हो जाता है। क्योंकि सिहागढ़ की जीत के पश्चात यह खबर राजगढ़ पर शिवाजी महाराज तथा मातोश्री जिजाऊ साहब को मिले इसीलिए मावलों द्वारा घास के ढेरों को आग लगाई जाने के संदर्भ समकालीन सभासद बखर में लिख कर रखे गए हैं। भूषण ने भी यही लिखा है।
शिवाजी महाराज का व्यक्तित्व ही इतना प्रभावी था कि उनके लिए उनके सिपाही जान की परवाह किए बगैर तोपों की बौछार में भी शत्रुओं पर टूट पड़ते इस प्रकार की साक्ष अपनी कविता में भूषण देते हैं--"छूटत कमान बान बंदुकरू कोकबान मुसकिल होत मूरचानहू की ओट में ताही सभै सिवराज हुकुम कै हल्ला कियो दावा बांधि द्वेषिन पै बीरन लै जोट में। भूषण भनत तेरी हिम्मति कहां लौं कहौं किम्मति इहां लगि है जाकि भटसोट में।ताव दै-दै मुछन कगुरन पै पांव दै-दै अरि मुख कूदे परैं कोट में"।। अर्थ--शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर वीर उनका आदेश पाकर तोफों, बागों, बंदूकों और कुहूबाणों की धुआंधार मार के बीच, जहां मोचों की ओट में भी प्राण बचाना मुश्किल हुआ करता था, वहां मूछों पर ताव दे, किले के कंगुरों पर पांव रख शत्रुओं के मुंह पर घाव कर किले में कूद पड़ते थे।
अंततः छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रति अपनी शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए भूषण लिखते हैं--"पुहुलि फणानि रवि सारी पवन, जब लौं रहे अका।सिव सरजा तब लौं जियौ, 'भूषन' सुजस ग्रकासा"।। अर्थ--- जब तक पृथ्वी सूर्य चंद्रमा वायु और आकाश है तब तक है वीर केसरी शिवाजी आप जीवित रहे और आपके सुयश का प्रकाश होवे।
छत्रपति शिवाजी महाराज के पराक्रम कीर्ति संपूर्ण हिंदुस्तान में फैल गई थी इनके प्रभाव से उत्तर हिंदुस्तान का कवि भूषण उनकी ओर आकृष्ट हो गया। उसने शिवाजी महाराज पर लिखा हुआ काव्य भारतीय साहित्य में अमर सिद्ध हुआ है वो क्षण को और लोग की प्रतिभा प्राप्त थी साथ ही समकालीन घटित होने वाली ऐतिहासिक घटनाओं का भी वे अच्छी तरह से परीक्षण कर सकते थे मुस्लिम शासकों अत्याचारों को रोकना हिंदुस्तान के किसी भी राजा का संभव न संभावना था पराक्रमी राजपूत राजा भी हतबल हुए थे इस पृष्ठभूमि पर शिवाजी महाराज का पराक्रम भूषण के अद्भुत लगना स्वाभाविक ही था। भूषण की दृष्टि से छत्रपति शिवाजी महाराज का सबसे बड़ा कार्य याने हिंदुओं के हिंदुत्व की रक्षा कर उनमें आत्मसम्मान तथा मनोबल निर्माण की चेतना जागृत करना रहा है। दूसरे शब्दों में शिवाजी महाराज के कारण हिंदुओं की लाज रखी गई। साहित्यशास्त्र की दृष्टि से भूषण का काव्य मौलिक है ही इसमें कोई संदेह नहीं परंतु मराठी व्यक्तियों की दृष्टि से उत्तर का कोई पंडित छत्रपति शिवाजी महाराज की कीर्ति सुनकर दक्षिण में आकर रायगढ़ पर महाराज के से मिलता है महाराज उसे राजाश्रय देते हैं और वही कवि महाराज का कार्य समस्त हिंदीवासियों के सम्मुख रखता है यह चीज गर्व एवं गौरव की है।
भूषण का काव्य शिवचरित्र का एक महत्वपूर्ण साधन भी है।पूरे हिंदुस्तान की जनता का दक्षिण के इस राजा की ओर देखने का दृष्टिकोण किस प्रकार का था यह इस काव्य से स्पष्ट हो जाता है। कविवर भूषण का यह मराठी भक्ति पर हमेशा के लिए ऋण रहेगा। इस चीज को स्वीकारना ही पड़ेगा।
कवि भूषण के काव्य का अनुसंधान आत्म अवलोकन करते समय डॉ जयश्री वाडेकर ने अपने मतों विचारों मान्यताओं की पुष्टि हेतु आचार्य भगीरथ प्रसाद दीक्षित डॉ शकुंतला अरोरा डॉ वसंत मोरे डॉक्टर जयदेव कुमार शर्मा आदि कई समर्पित विद्वानों समीक्षकों की मान्यताओं के संदर्भ दिए हैं जिसमें एक और उनका कार्य अनुसंधान की कसौटी पर खरा उतरा है तो दुसरी ओर उनके विवेचन विश्लेषण की गहराई भी बढ गई है। डॉ.वाडेकर ने बहुत ही लगन एवं परिश्रम से भूषण काव्य मीमांसा कर प्रस्तुत विषय को न्याय देने की कोशिश की है। उनकी इस मौलिक ग्रंथ रचनाओं से भूषण काव्य से संबंधित रचनाओं में वृद्धि ही हुई है। भूषण की रचनाओं पर उनके भूषणीय कार्य के लिए उनका हार्दिक अभिनंदन करना उचित ही होगा।
- डॉ.जयसिंगराव पवार
कोल्हापुर।