एम. ए (हिंदी), बी.एड, पीएचडी (हिंदी)
असिस्टेंट प्रोफेसर (हिंदी)
M.A (Hindi), B.Ed, Ph.D (Hindi)
Assistant Professor (Hindi)
प्राक्कथन
साहित्य का मूल्यांकन करने वाला या साहित्य सौंदर्य की परख करने वाला शास्त्र साहित्य शास्त्र कहलाता है। संस्कृत में इस शास्त्र के लिए अनेक नाम प्रचलित रहे हैं-काव्यशास्त्र, अलंकार शास्त्र, काव्यमीमांसा, साहित्य विधा, साहित्य मीमांसा क्रियाकलाप आदि। साहित्यशास्त्र के अध्ययन से विविध साहित्यिक सौंदर्य तत्वों एवं कलात्मक रूपों को समझने की क्षमता का विकास होता है। और साहित्यानुशीलन की गहरी अंतर्दृष्टि विकसित होती है। साहित्यशास्त्र जिसे 'साहित्य दर्शन' कहा जाता रहा है -के ज्ञान की उपयोगिता पर विचार करना उपयुक्त होगा। साहित्य के स्वरूप, प्रेरणा, स्वभाव, हेतु, प्रयोजन या उद्देश्य, सौंदर्य चेतना और काव्य रूप, प्रभाव, उपादान आदि के संबंध में बहुत समय से देश-विदेश में गंभीर चिंतन होता आया है। इस चिंतन के फलस्वरूप कुछ ऐसे मौलिक सिद्धांत (रस, अलंकार, वक्रोक्ति, रीति, ध्वनि, अनुकरण सिद्धांत, विरेचन सिद्धांत आदि) के निर्धारित किए गए हैं, जिनका ज्ञान कवि- पाठक- आलोचक के लिए उपयोगी होता है। देश-विदेश के इन्हीं सिद्धांतों या विचारधाराओं को लेकर साहित्यशास्त्र या साहित्य-दर्शन का निर्माण हुआ है।
प्रस्तुत पुस्तक के संबंध में मुझे कुछ बातों का स्पष्टीकरण आवश्यक प्रतीत होता है। मेरे दृष्टि में हमेशा विद्यार्थी रहे हैं यह पुस्तक विद्यार्थी को के लिए अध्ययन-अध्यापन सुस्पष्ट, बोधगम्य हो यही मेरी प्रामाणिक मनीषा रही, उनके सुविधा का ख्याल रखते हुए सुनियोजित लेखन करके इस साहित्यशास्त्र के पाठ्यक्रम पुस्तक उन्हीं विद्वानों की मान्यताओं का संकलन तथा कुछ हद तक उन्हें पहचानने का लघुत्तम प्रयास है। अपने अध्यापन के अनुभव के सहारे मैंने इसे विद्यार्थियों के लिए उपयोगी बनाने की ओर आवश्यक ध्यान दिया है। मैं बड़ी विनम्रता से इतना अवश्य कहना चाहूंगी कि मेरा यह कतई दावा नहीं है कि यह पुस्तक मेरी मौलिक चिंतन का परिणाम है, छात्रओं को सुबोध हो इसके प्रति विशेष ध्यान रखा है।
हजारों वर्षों में अनेकों मनीषियों ने अपने गहन अध्ययन से जिन सिद्धांतों की स्थापना की है, उसी चिंतन को जहां तक संभव हो सहज- सरल रूप में प्रस्तुत करने का मेरा छोटासा प्रयास है।
प्रस्तुत पुस्तक दो खंडों में विभाजित है। पहला खंड 'कला और साहित्य' साहित्य के स्वरूप, प्रयोजन हेतु जैसे बुनियादी प्रश्नों से संबंधित है। भारत और पश्चिम के आचार्यों द्वारा इन प्रश्नों पर विचार और विवेचन का संक्षिप्त परिचय इस खंड में दिया गया है। इस खंड के शब्द-शक्तियों के विषय में भी बताया गया है। दूसरा खंड 'भारतीय सिद्धांत' में भारतीय साहित्यशास्त्र के विकास को एवं उनकी परंपराओं को महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर प्रकाश डालकर उनका विवेचन यहां किया गया है। भारतीय रस सिद्धांत, अलंकार सिद्धांत, ध्वनि सिद्धांत, वक्रोक्ति सिद्धांत, औचित्य सिद्धांत का विवेचन किया गया है।
पहली और दूसरी पुस्तक का पाठकों ने जी भर के स्वागत किया। इसलिए तीसरी पुस्तक प्रस्तुत करने का साहस कर सकी। यह पुस्तक लिखने के लिए जिन महान विभूतियों की प्रेरणा प्राप्त हुई है, वे श्रीमती दानकुंवर महिला महाविद्यालय संस्था के अध्यक्ष श्री. महेंद्रकुमार जी गुप्ता, सचिव श्री. मुकेश जी अग्रवाल, सहसचिव श्री. गणेश जी अग्रवाल, कोषाध्यक्ष श्री. संजय जी अग्रवाल, संचालक श्री. श्यामसुंदर जी अग्रवाल, श्री. जितेंद्र जी गुप्ता, श्री. सुरेंद्र जी अग्रवाल, श्री. विनोद जी अग्रवाल, श्री. राजेश जी अग्रवाल, श्री. जगदीश जी अग्रवाल, श्री. नरेश अग्रवाल,प्र. प्राचार्य डॉ. विजय जी नागोरी, उपप्राचार्या डॉ. विद्या जी पटवारी इनके प्रति मेरी श्रद्धा एवं कृतज्ञता सादर समर्पित है।
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद हिंदी विभाग के आदरणीय गुरुवर प्रो. डॉ. सुधाकर शेंडगे,प्रो. डॉ. संजय नवले, प्रो. डॉ. भारती गोरे, डॉ. संजय राठोड़, डॉ.भगवान गव्हाडे इनके प्रति विशेष कृतज्ञता ज्ञापित करती हूं। इनके द्वारा समय-समय पर मुझे कुछ करते रहने का सहज परामर्श मिलता रहा है। इनका यह स्नेह भाव सदैव इस भांति बना रहे, ईश्वर से ऐसी प्रार्थना है।
प्रस्तुत पुस्तक को लिखने के लिए प्रो. डॉ. नानासाहेब गोरे ने अनुरोध ना किया होता तो संभवत: यह पुस्तक लिखी ना गई होती। मुझे लिखने के लिए प्रोत्साहित करते रहे अपितु लेखन तथा जीवन में जब-जब भी मैं,द्विधाग्रस्त मोड़ पर खड़ी होती हुं तब-तब मुझे सही राह का निर्देश देते रहे हैं। मैं सदैव इनके मूल्यवान समय के लिए इनके सहयोग के प्रति चिर ऋणी रहूंगी। दी
श्रद्धेय परम पूज्य संत भागीरथी और संत भीमराव जी चौहान तथा पूजनीय मेरे माता-पिता के आशीर्वाद मुझ पर सदैव बना रहे ऐसी ईश्वर से प्रार्थना करती हूं।
मैं अपने सहचर श्री. भास्कर जी वाडेकर के ऋण से मुक्त नहीं हो सकती, उनके ऋण में रहना अच्छा लगता है। जिन्होंने मुझे शिक्षा जैसे पावन कार्य के लिए प्रेरित कर हौंसला प्रदान करते रहे। मेरे सुपुत्र चि. नीरज और चि. देवांश विशेष रूप से धन्यवाद के अधिकारी है।
इंटरनेशनल पब्लिकेशन कानपुर के अभिभावक श्री. तिवारी एवं अन्य सहयोगीयों का परिश्रम तथा लगन स्वरूप यह पुस्तक सुचारू रूप में अल्पावधि तैयार की है।
अंततः यह पुस्तक प्रतिष्ठित प्राध्यापकगण एवं विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थी, जिज्ञासु छात्र, साहित्य अध्येता के लिए है। अंत में मेरी सभी सहयोगी, पाठकगण तथा सभी छात्रों को धन्यवाद उनका स्नेह और जिज्ञासा मेरी लिखने की प्रेरणा रही है। इनके सराहना के बल एक और पुस्तक प्रस्तुत करने का साहस कर रही हूं। आशा है कि इस पुस्तक का स्वागत होगा।
- प्रा. डॉ.जयश्री वाडेकर