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                         संपादकीय

श्रीमती दानकुंवर  हिंदी कन्या विद्यालय समिति, जालना द्वारा संचालित श्रीमती दानकुंवर महिला महाविद्यालय का  हिंदी विभाग आरंभ से ही अध्यापन के साथ-साथ अकादमिक गतिविधियों से संलग्न रहा है। इस विभाग ने  छात्राओं के साहित्यिक एवं व्यक्तित्व विकास संबंधी कार्यक्रमों एवं उपक्रमों का सफलतापूर्वक आयोजन किया है। कोरोना जैसी  वैश्विक महामारी में  "हिंदी दिवस" उत्सव के रूप में मनाकर हिंदी की गरिमा बढ़ाने का हमारा प्रामाणिक उद्देश्य था।एक में कोरोना जैसे वैश्विक महामारी से पूरा देश जूझ रहा था तो दूसरी ओर इस महामारी के साथ दो हाथ करने की जंग में ज्ञान साधक ज्ञानी स्वस्थ नहीं बैठा। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से चिंतन,मंथन का महायज्ञ जारी रहा है। ऐसी परिस्थिति में हमने  राष्ट्रीय हिंदी दिवस पर राष्ट्रीय वेबीनार संगोष्ठी का आयोजन की मनीषा महाविद्यालय के आदरणीय प्र.प्राचार्य डॉ. विजय नागोरी के समक्ष प्रस्तुत की। उन्होंने उतनी ही तत्परता के साथ मेरे इस आयोजन को स्वीकृति प्रदान की।  हिंदी भाषा के आयाम पर सुधी समीक्षकों,चिंतकों द्वारा चिंतन हो इसलिए हमने "परिवर्तित भाषिक परिदृश्य और हिंदी के रोजगारपरक आयाम" इस विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। हिंदी का परिदृश्य, वैश्विक परिदृश्य में हिंदी का स्थान, हिंदी के रोजगारपरक आयाम, अनुवाद कला, प्रयोजनमूलक हिंदी में रोजगार, सोशल मीडिया, समाज विकास में हिंदी इससे  सब बिंदुओं, आयामों पर इस संगोष्ठी में मंथन हुआ तथा हिंदी प्रेमी, व्याख्याता, विद्वान, चिंतक, अनुसंधानकर्ताओं की ओर से शोध आलेख आमंत्रित किए गए।

भाषा केवल विचार विनिमय का ही नहीं बल्कि स्वयं विचार का भी साधन है क्योंकि भाषा के माध्यम से ही सार्थक और समग्र चिंतन संभव होता है। हिंदी भाषा उमंग,तरंग की लय  में अपने अस्तित्व आरोहन का मृदुंग बजा रही है।हिंदी का इतिहास इस तथ्य का साक्षी रहा है कि उसे मध्यकाल में अरबी और तुर्की से संघर्ष करना पड़ा। उत्तर मध्यकाल तक आते-आते उर्दू उसकी प्रतिद्वंद्वी बन गई, फिर अंग्रेजी ने उसके अस्तित्व को चुनौती दी। लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति में हिंदी की प्रतिष्ठा शुन्य कर दी। बाद में हिंदी का न केवल उर्दू और अंग्रेजी बल्कि हिंदुस्तानी से भी संघर्ष हुआ। हिंदुस्तानी के पक्ष में महात्मा गांधी एवं उनके अनुयायी थे, तो हिंदी के पक्ष में राजर्षी  पुरुषोत्तमदास टंडन एवं सेठ गोविंददास आदि थे। अंततः हिंदी को राजभाषा के रूप में संविधान सभा ने स्वीकृति  प्रदान की।

स्वाधीनता प्राप्ति के साथ ही जब राष्ट्र के लिए एक संविधान, एक राष्ट्रीय ध्वज और एक ही राष्ट्रगान को मान्यता प्रदान की गयी, तब पूरे देश के लिए एक ही राष्ट्रभाषा अर्थात हिंदी को भी मान्यता प्रदान करने की आवश्यकता थी। परंतु ऐसा नहीं हो सका। इसीलिए शासन के स्तर पर हिंदी को आज तक राष्ट्रभाषा की मान्यता प्राप्त नहीं है। आज भी यह प्रश्न समस्या के घेरे में है,इससे राष्ट्रीय भावनाओं का  कमजोर हो जाने का खतरा निरंतर बढ़ता जा रहा है। अत: आज एक नए संकल्प की आवश्यकता है। जो भाषाई आधार पर हो रहे विभाजन को अंग्रेजी के बढ़ते वर्चस्व को समाप्त कर देश की सांस्कृतिक एकता को मजबूत कर सके इसके लिए हिंदी को रोजगारोन्मुखी बनाना पहली आवश्यकता है। आज भारत सरकार की अत्यंत महत्त्वाकांक्षी योजना में 'मेक इन इंडिया' ने अर्थव्यवस्था के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। इस उपजी संभावनाओं का लाभ भारतीय भाषाओं को मिले इस पर विचार करना आवश्यक है।  भाषा का रोजगार से भी गहरा संबंध होता है यह अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न किसी भी अभिभावक के लिए अपने बच्चों के भविष्य के बारे में विचार करने के लिए बाध्य करता है। किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए भाषा-शक्ति आधार का काम करती है। किसी भी देश की सामाजिक आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रगति में उस देश की भाषा का अहम योगदान होता है भारत में हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसने विविधता में एकता स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विश्व के अधिकांश देशों में हिंदी बोली समझी लिखी और पढ़ी जाती हैं। हिंदी दुनिया की अधिकतम बोली जाने वाली भाषा है किसी भी भाषा को समृद्ध से समृद्धतर बनाना हो तो उसे रोजगार से जोड़ देना चाहिए। रोजगार के अवसर होने से भाषा स्वत:ही अपने आयाम तय कर लेती है और यह बात अत्यंत सुखदायक है कि हिंदी भाषा उस दिशा की ओर उन्मुख हो चुकी है। वैश्विक स्तर पर रोजगार के विभिन्न अवसर हिंदी भाषा के जानकारों के लिए उपलब्ध है।

 श्रीमती दानकुंवर हिंदी कन्या विद्यालय समिति द्वारा संचालित श्रीमती दानकुंवर महिला महाविद्यालय संस्था के अध्यक्ष श्री. महेंद्रकुमारजी गुप्ता, सचिव श्री. मुकेशजी अग्रवाल, सहसचिव श्री. गणेशजी अग्रवाल, कोषाध्यक्ष श्री. संजयजी  अग्रवाल, संचालक श्री. श्यामसुंदरजी अग्रवाल, श्री. जितेंद्रजी गुप्ता, श्री. सुरेंद्रजी अग्रवाल, श्री. विनोदजी अग्रवाल, श्री. राजेशजी अग्रवाल, श्री. जगदीशजी अग्रवाल, श्री. नरेशजी अग्रवाल, इनके प्रति मैं  विशेष आभार प्रकट करती हूं की इन्होंने हिंदी दिवस उत्सव में सम्मिलित होकर, हिंदी की गरिमा बढ़ाते हुए अपूर्व महत्व विशद किया। प्र. प्राचार्य प्रो. डॉ. विजय नागोरी,उपप्राचार्य प्रो.डॉ विद्या पटवारी, आइक्यूएसी के समन्वयक प्रो. डॉ. जितेंद्र अहिरराव इन सभी के स्नेह-आशीर्वाद एवं प्रोत्साहन की उर्जा से यह कार्य सफल हो सका। इसलिए इनके प्रति भी मैं अपनी  कृतज्ञता प्रकट करती हूं।

एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रमुख वक्ताओं  में हरिश्चंद्र पी.जी. कॉलेज, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के डॉ. अनिलप्रताप सिंह, डॉ . बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय,औरंगाबाद हिंदी विभाग के प्रो.डॉ. भारती गोरे ने अतिथि के रूप में उपस्थित रहकर मार्गदर्शन किया। इनके प्रति मैं  हमेशा ऋणी रहना चाहूंगी।

प्रत्येक अकादमी  कार्य की प्रेरणा मुझे नित मिलती रही ऐसे मेरे मार्गदर्शक प्रो.डॉ. नानासाहेब गोरे,डॉ. गोविंद बुरसे, डॉ. अलका गडकरी, डॉ. रवींद्र भोरे,  डॉ. विनोद जाधव, डॉ. ज्ञानेश्वर महाजन, डॉ. अनिता राऊत मेरे कार्य निष्ठा के लिए निरंतर प्रेरित करते ही रहते हैं। इनके प्रति मैं आभार प्रकट करती हुं।

अंतत: हिंदी के अद्यतन आयाम पर प्रकाश डालने में इस पुस्तक के लेखक सफल माने जा सकते इस पुस्तक में सम्मानित प्रतिष्ठित, प्राध्यापकगण एवं विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थी के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से हिंदी की वैश्विक तथा रोजगार के विविध मार्ग को समझने की जो संरचनात्मक कोशिश की उन्हीं के दृष्टिकोण का समावेशित रूपों का संकलन है यह पुस्तक। हिंदी के प्रति जिज्ञासु रहने वाले पाठक, हिंदी प्रेमी, शोधार्थी, छात्रों को यह पुस्तक उपयोगी एवं सृजन कार्य में सहायक साबित होगी । यह पुस्तक हिंदी के सहज और शाश्वत प्रभाव में सहयोगी बने, इन भावनों  के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत है।

जिनकी कृतज्ञता में मैं हमेशा रहना पसंद करूंगी ऐसे मेरे सहचर श्री.भास्कर वाडेकर, तकनीकी सहयोग करते हुए, नयी शिक्षा नवतंत्रज्ञान को अवगत कराने वाले मेरे सुपुत्र चि. नीरज, चि. देवांश धन्यवाद के अधिकारी है। अस्तु

                                                                                                                                                                                                -   डॉ.जयश्री वाडेकर

                                                                                                                                  

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